Thursday, December 9, 2010

बापू की अंतिम यात्रा



भूमंडल से नभमंडल तक चहुँओर अंधेरा छाया
कर्णधार ही चले गए किसने यह गान सुनाया 


नहीं जानता था कोई कब काल यहाँ पर आया 
धिक्कार है उसको जिसने बापू पर हाथ चलाया 

मेरी किस्मत में आग लगी, औरों की किस्मत फूट गयी 
अपने ही हाथों से हाए, बापू पर गोली छूट गयी 


वह बांध अहिंसा का भारी, मेरे सन्मुख ही टूट गया 
वह प्रेम भरा गागर भी मेरा, आज वहीं पर फूट गया 

गोली थी बापू के सीने पर, या थी अपने ही त्राता पर 
गोली बापू पर नहीं, चली भारत के भाग्य विधाता पर 

उनके सीने से रक्त गिरा, या आहों से भरी फुंकार गिरी 
उस देवदूत के सीने से, हरि वीणा की झनकार गिरी 

वह देवों से भी बढ़कर था, वह निर्धन जन का भी धन था 
जनता की करुण पुकार बना, वह जीवन का भी जीवन था 

वह एक धेय से आया था, बस नाव हमारी खेने को 
पुण्य पिलाने, सत्य बांटने, अस्त्र अहिंसा देने को 

बन पीड़ितों की पुकार चला, हरिजन का बन आधार चला 
डगमग नैय्या थी डोल रही, बनकर वह खेवनहार चला 

आजादी की अम्बुधि उठने से, निकल पड़ा विष का प्याला 
पीना वाला था कोई नहीं, बापू ने उसको पी डाला 

आज़ादी का आगमन हुआ, पर हम अपने ही छले गए 
इस बीच भंवर में नैय्या को तज बापू मेरे चले गए 

करता था हुंकार कभी तो शत्रु शिविर भहराता था 
था तो दुबला पतला ही पर भूमंडल भी थर्राता था 

आंचल पसार माँ मांग रही अपने उस बापू प्यारे को 
भिक्षा में फिर देदो भगवन मेरे उस एक सहारे को 


- निर्मल कुमार सिन्हा


This piece was penned by my grandfather long ago, when he used to love writing poetry and also had the leisure to do so! This is the first time this piece has been documented (it's still in its incomplete form though), as until now he used to quote this from his memory for our listening pleasure. If only I could lay my hands on some other of his poems! I feel so proud and humbled in letting my small personal blog space have the honor of putting my grandfather's close-to-heart works; you mean a lot to all of us in the family, Dadaji; I am just not good enough in wording all those overwhelming emotions. Please accept this as my small and unassuming tribute to you...

P.S. Any mistake in form of mis-spelled words, missing punctuations, etc. arise out of my own incompetence in understanding of the language.

2 comments:

  1. my happiness bounds no words to this blog. may every family has a grand child like u ! more than my honored poem,i like your wonderful message for me.m delighted.
    may god bless u with bright & shining future and may u reach the highest peak of prosperity.

    with all my love and affection
    dada ji.

    ReplyDelete